Wednesday, December 23, 2015

कौसानी दूसरा दिन

दिसंबर 31 2013

कौसानी से बैजनाथ, रानीखेत, नैनीताल

इस यात्रा को शुरू से पढ़े 

रात ठीक से नींद नहीं आई पता नहीं कहा से कमरे में हवा आ रही थी वोह भी बर्फीली हवा।  कमरे की साइड में बहुत बड़ी खिड़की थी और ठीक सामने बर्फीली चोटिया। त्रिशूल हमे कमरे के बेड से ही दिख रहा था अति सुन्दर दृश्य था। सुबह 6.30 पर उठ गया। बाकि सब सोते रहे मैंने रात ही कह दिया था सुबह जल्दी उठ कर सूर्योदय देखना है। मुझे कमरे से बाहर जा कर वीडियो बनानी थी और फोटो भी लेने थे। जैसे ही मैं कमरे से बाहर गया सब उठ गए पर साथ में कोई नहीं चला। सूर्योदय देख कर मैं वापसी आया और बारी बारी हम नाहा लिए। नाश्ते में उबले हुए अंडे खाए मयंक ने अंडा खाने को मना कर दिया, रात ही बात हो गई थी यहाँ से 18 KM दूर बैजनाथ मंदिर है तो पहले वहाँ जायेंगे।

यहाँ फैजान ने मुझे 1 नया शौक़ लगा दिया हाफ बॉइल्ड अन्डो का तब से आज तक मैं हाफ बॉयल्ड अंडा ही खाता हू।

सुबह 9:30 बजे कौसानी से बैजनाथ की ओर चल दिए। इस रस्ते पर चाय के बागान हैं और 1 शाल फैक्ट्री भी है। 15  मिनट के लिए शाल फैक्ट्री में रुके। यहाँ पश्मिनी शाल देखा, देखने में तो बहुत पतला लग रहा था और महंगा भी था तो साहब नहीं लिया बाद में घर जा कर पता चला पश्मिनी शाल पतला होता है पर गरम बहुत होता है।
10:30 बजे बैजनाथ के मंदिर पहुंचे। रात इतनी ज़्यादा ठण्ड थी के मंदिर परिसर की बेंचों पर पाला जमा हुआ था जब की बैजनाथ 1100 मीटर और कौसानी 1750 मीटर की उचाई पर।

आधा घंटा बैजनाथ में रुक कर हम वापसी कौसानी होते हुए रानीखेत आ गए। रानीखेत में पहले तो हम गोल्फ कोर्स गए, कहा जाता है यह एशिया का सब से ऊचाई पर बना गोल्फ कोर्स है। आमने सामने 2 मैदान हैं। यहाँ रुक कर थोड़े फोटो लिए फिर हम चौबटिया गए। चौबटिया जाने का उत्तम समय होता है जून से अगस्त तक उस समय वहाँ सेब पेड़ो पर लगे होते हैं हम तो दिसंबर में गए थे तो पेड़ो पर सेब क्या पत्ते भी नहीं थे। चौबटिया पर आप को बहुत सरे गाइड मिल जायेंगे, सब कहते हैं आप को जंगल घुमा कर लाएंगे हिरण दिखायेंगे। हमने पूछा तेंदुआ दिखाओगे ? सब ने 1 साथ कहा वोह तो कभी कभी दिखता है। चौबटिया के निचे निचे काफी घना जंगल है। हिरण तो देखने को मिल जाते हैं कभी कभी तेंदुआ भी मिल जाता है। जब मैं मुनस्यारी गया था तो वह मुझे 1 कार ड्राइवर ने चौबटिया के फोटो दिखाए थे तेंदुए ने गये का शिकार करा था। वह ड्राइवर यही कही का रहने वाला था।

4 बजे चौबटिया से नैनीताल की तरफ चल दिए। 6 बजे नैनीताल पहुंचे 31 दिसंबर की वजह से नैनीताल में बहुत भीड़ थी। हमे नैनीताल में एंट्री करते ही पता  चल गया था के मल्लीताल की पार्किंग में जगह नहीं है। नैनीताल के GIC कॉलेज के पास मेरे रिश्तेदार रहते हैं  वही कार पार्क कर दी। सभी होटल वालो के दिमाग सातवे आसमान पर थे। ज़्यादातर होटल तो फुल थे और जो खली थे वह बहुत महंगे थे। 1 घंटे छानबीन कर के होटल फाइनल हो गया।

आज आशीष मुरादाबाद से आ रहा था। 7 बजे उसका फ़ोन आया। हल्द्वानी में था कहने लगा मुझे लेने आ जाओ घर से सख़्त हिदायत मिली थी अँधेरा होने के बाद ड्राइविंग नहीं करनी है बोला भाई टैक्सी से आ जा। 9 बजे हम मल्ली ताल में खाना खा रहे थे तो उस का फ़ोन आया वोह नैनीताल आ गया है। उस से कहा भाई वही इन्तिज़ार कर हम आ रहे। उस को अपने रिश्तेदार के घर रुकवा दिया। 10 बजे हम आये और उसको भी बुला लिया। सब 12 या 1 बजे तक मस्ती करते रहे और सो गए। रात 10 बजे से बारिश हो रही थी।



सुरयुदय - त्रिशूल 


बीच में जो चोटी दिख रही है वह है नंदा देवी पीक 


होटल सुमित 

















मंदिर परिसर में पाला जमा हुआ 





गोल्फ कोर्स - रानीखेत 






चौबटिया - सेब क्या सेब के पत्ते भी नहीं हैं। 



अगले भाग में जारी


















Monday, December 14, 2015

कौसानी - पेहला दिन

29 December 2013

पिछले कुछ दिनों से मैं अपने मित्रो के साथ नए साल पर कही घूमने जाने की सोच राहा था। हमारा इरादा कुमाऊ या गढ़वाल में से 1 हिस्से में जाने का था। काफी विचार विमर्श के बाद फैसला हुआ कौसानी चलते हैं और वह से रानीखेत होते हुवे नैनीताल में नया साल।

पहले तो हम 5 लोग जाने के लिए तैयार थे परन्तु 1 मित्र का एग्जाम 30 दिसंबर को आ गया हमे तो जाना था उस से तय हुआ के वह हमे 31 दिसंबर को नैनीताल में मिलेगा। हम चार लोग मयंक अनस फैज़ान और मैं सुबह 7:15 बजे मुरादाबाद से चल दिए। हमारे साथ बस मयंक को ही कार चलानी आती है तो पूरे रस्ते उसको ही चलानी थी। सब के घर से हिदायत मिली थी दिन के उजाले में ही चलना अँधेरे में पहाड़ी रस्ते पर सफर नहीं करना। सुबह चलते ही फैसला हुआ आज अगर कौसानी नहीं पहुंच पाये तो रानीखेत रुकेंगे कल कौसानी जायेंगे।

10:45 पर रामनगर पहुंच गए सुबह सब ही बिना ब्रेकफास्ट करे आये थे तो भूख लगने लगी थी। यहाँ रुक कर ब्रेड ऑमलेट खाया। उत्तराखंड में पेट्रोल सस्ता है यही से 2000 का पेट्रोल भी भरवा लिया। रामनगर से 1 रास्ता कालाढूंगी होता हुआ नैनीताल गया है और दूसरा गिरजिया देवी, कॉर्बेट नैशनल पार्क होता हुआ रानीखेत। गिरजिया देवी मंदिर पार करने बाद सड़क पर  हिरन का झुंड मिला। 5 6 हिरन थे फोटो लेने के लिए जैसे ही कार से उतरे सब सब के हिरन भाग गए। थोड़े आगे गए तो 1 झुंड और मिला यहाँ भी यही हुआ हिरन ने अपना फोटो नहीं लेने दिया । रामनगर के बाद मोहान आता है यहाँ से बायें हाथ वाली सड़क पता नहीं कहा गयी है और दायें हाथ वाली सड़क रानीखेत। दोपहर 2 बजे रानीखेत पहुंच गए अब क्या तुरंत ही फैसला हो गया खाने लिया बिना रुके कौसानी चलो। कुछ चिप्स और कोल्ड ड्रिंक ले कर बिना रुके रानीखेत से चल दिए।

रानीखेत से कौसानी के लिए 2 रस्ते हैं 1 बग्वालिपोखर होता हुआ और दूसरा कसता होता हुआ, दोनों ही रस्ते सोमेश्वर में मिल जाते हैं। मैंने दोनों ही रस्ते सब को बता दिए और किसी ने भी यह फैसला नहीं करा के किस तरफ से जाया जाये यह देख मैंने कह दिया 60 KM वाले रस्ते से चलते हैं और अगले 40 KM मेरे लिए बहुत भारी रहे सब मिल कर मुझे बुरा भला कहते रहे। रास्ता इतना पतला था के सामने से 1 कार भी आ जाती तो शायद निकल नहीं पाती और सड़क का नाम नहीं था बिलकुल टूटा हुआ रास्ता था। ऊपर से अगले 40 KM कोई कार क्या कोई भी नहीं मिला पहाड़ी टूटे रस्ते पर बस हम ही जा रहे थे 20 25 की स्पीड से, और सब मिल कर मुझे कह रहे थे अगर पंचर हो गया तो इस को ही भेजना मदत मांगने पैदल जायेगा यह। खेर जैसे तैसे सोमेश्वर पहुंच गए।

रस्ते में ही देख लिया था आज सूर्यास्त 5:18 पर है, 4.45 से ही हमे फ़िक्र होने लगी। हम आज हे कौसानी से सूर्यास्त देखना चाहते थे। बार बार मै मयंक को घडी दिखा रहा था उसने कहा मै पंहुचा दूंगा चुप चाप बैठा रह।5:10 पर हम कौसानी के अनाशक्ति आश्रम में थे यहाँ से पर्यटक सूर्यास्त देखने आते हैं हम बिना कही रुके सीधे अनाशक्ति आश्रम गए। बड़ा हे मनमोहक दृश्य था वह से। सामने त्रिशूल , नंदा देवी जैसी चोटियाँ थी। सूर्यास्त के बाद होटल देखना शुरू करा 2 होटल देखे बहुत महंगे लगे 1 गाइड से बात करी। कुछ दूर 1 होटल अपने बजट का मिल गया।

कौसानी ज़्यादा बड़ा नहीं है और ना ही नैनीताल मसूरी जैसा सूर्यास्त के बाद ज़्यादातर बाज़ार बंद हो गया। होटल रूम में ही खाना माँगा लिया। खाना खा कर निकल गए कौसानी का बंद बाज़ार घूमने। रात में इतनी ठण्ड थी के हम चारो ठण्ड से काॅप रहे थे। जल्दी ही वापसी आ कर सो गए।




अब्दुल 

मयंक 

अनस 

फैज़ान 






बर्फ़ीले पहाड़ो की पहली झलक - रानीखेत से 35 KM  पहले 




त्रिशूल का अद्भुद दृशय - अनाशक्ति आश्रम से 

अनाशक्ति आश्रम से 






अगले भाग में जारी








Monday, July 13, 2015

मुनस्यारी तीसरा दिन -खलिया टॉप

खलिया टॉप 

कल बारिश की वजह से खलिया टॉप नहीं जा पाया था, मेरे पास बस आज का दिन बचा था खलिया जाने के लिए। कल यहाँ से अल्मोड़ा जाना है.
बादलो की वजह से कल सूर्य उदय भी नहीं देख पाया था आज सुबह 4.45 पर उठ गया पर आज भी बदल थे. 5 मिनट बादल हटने का इंतिज़ार करा फिर वापसी कमरे में चला गया,

सुबह 5.45 पर मैं तैयार हो गया, नाशते में चाय और ब्रेड बटर लिए. 4 ब्रेड के पीस 50 रुपये के दीये, यह देख कर मेरे होश उड़ गए सोच लिया अब इस होटल में नहीं खाऊंगा। दाल सब्जी, दम आलू 120, 140 के और 4 ब्रेड के पीस 50 रुपैये के हद है।

जैसा की मैंने पिछले ब्लॉग में लिखा था, खलिया टॉप की ट्रैकिंग बलाती बैंड से शुरू होती है और बलाती बैंड मुख्य शहर से 9  KM  दूर थल रोड पर है. ज़्यादा तर लोग गाड़ी से बलाती बैंड तक जाते हैं. मेरी इछा भी जीप से जाने की थी इस के दो कारण थे, पहला बलाती बैंड तक का पैदल मार्ग 5 KM है और अगर मै पैदल जाता तो 5 KM ज़्यादा चलना पड़ता और पता नहीं वापसी में बलाती से कोई गाडी मिलेगी भी या नहीं, तो वापसी में पैदल आना ठीक रहेगा दूसरा कारण था समय, खलिया टॉप बलाती बैंड से लगभग 8 KM दूर है, जहाँ बलाती बैंड की उचाई 2600 मीटर है वही खलिया टॉप की उचाई 3750 मीटर 8 km में 1150 मीटर चढ़ना था, ज़्यादा तर लोग खलिया टॉप पर टेंट लगा कर रात गुज़ारते हैं और अगले दिन वापसी आते हैं. मुझे आज ही वापसी आना था तो मैं बलाती बैंड तक जीप से जा कर अपनी ऊर्जा बचाये रखना चाहता था।

3750 मीटर सोच कर थोड़ा डर लग रहा था और वह भी अकेले, यह मेरी पहली इतनी उचाई की यात्रा थी इस से पहले 3000 मीटर वियास शिखर गया था। 6.30 बजे तक जीप का इन्तिज़ार करा पर कोई जीप नहीं मिली पैदल ही चल दिया, थोड़ी दूर जा कर 1 लड़के से बलाती बैंड के पैदल मार्ग की पुष्टि करी तो उसने पूछ लिया भैया कहा जाना हैं मैंने बता दिया बलाती बैंड से खलिया टॉप जाना है उस ने बताया के आप बलाती फ़ार्म जाओ, खलिया का रास्ता बलाती बैंड से शुरू हो कर बलाती फार्म के पास से ही जाता है, उस लड़के ने 1 पैदल मार्ग बता भी दिया। बस यही 1 गलती हो गई, मैं बिना सोचे उस के बताये मार्ग पर चल दिया वास्तव में वोह कोई मार्ग नहीं था, बस पहाड़ो पर चढ़ते जाओ ना ही कोई पकडंडी ना कोई रास्ता, बलाती फार्म पर काम करने वाले मज़दूर इस रस्ते से जाते हैं कुछ दूर जा कर 1 लड़का मिला वोह बलाती फार्म ही जा रहा था, मै उस से बाते करता हुआ उस के साथ साथ चलता रहा, मै तो बलाती फार्म तक पहुचने में ही थक गया था,

बलाती फार्म 2550 मीटर पर आलू का बहुत बड़ा सरकारी खेत है, यहाँ काफी बड़ा मैदान था जिस में सीढ़ी दार खेत थे सब खेतो में आलू थे। मै इतना थक गया था के 15 20 मिनट को यही बैठ गया कुछ फोटो खीचे। पूरे खेत के चारो तरफ पथरो से बानी 2 फ़ीट उची दिवार है जिस से की कोई पालतू या जंगली जानवर खेत में ना घुस जाये। खेत की दीवार कूद कर के खलिया टॉप को जाने वाली पगडंडी पर आ गया।

अब जंगल में अकेला चला जा रहा था चारो तरफ चिड़िये चहक रही थी। रस्ते में 1 2 लोग ही मिले,  4 KM दूर 3230 मीटर की उचाई पर कुमाऊं मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस बन रहा है लगभग काम पूरा हो गया है।  यहाँ कुछ मज़दूर काम कर रहे थे उन से बात करने पर पता चला के इस से आगे पानी नहीं मिलेगा बर्फ मिलेगी। मैं यहाँ आधा घंटा बैठा रहा। मेरी पानी की बोतल खाली होने वाली थी यहाँ भर ली। मैं अपने साथ चिप्स कोल्ड ड्रिंक ले गया था। यहाँ बैठ कर कोल्ड ड्रिंक पी चिप्स खाए। मैंने कोल्ड ड्रिंक की बोतल में भी पानी भर लिया। यहाँ जो पानी आ रहा था ऊपर बर्फ पिघल कर आ रही थी। यहाँ से चला तो हालत कुछ ख़राब होने लगी अभी तक मैं 3400 मीटर की उचाई पर पहुंच था। अब कुछ कुछ हाई अल्टीट्यूड  का असर हो रहा था 2 मिनट चलता 3 मिनट को रुक जाता।

दोपहर बारह बजे तक मैं  खलिया बुग्याल पहुंच गया था। यहाँ कुछ और पर्यटक भी थे। यहाँ कुछ देर आराम करा फिर चल दिया फिर से मैं जंगल में अकेला था। कुछ दूर गया तो काले बदल आने लगे, बुग्याल के दोनों तरफ खाई थी और दोनों तरफ ही बदल आने लगे अचानक बहुत तेज़ बिजली चमकी बहुत तेज़ आवाज़ के साथ। चलते चलते मेरे बैग में से हलकी सी आवाज़ आई मैंने बैग खोल कर देखा तो 1 चिप्स का पैकेट फट गया था। इस का कारण था हवा का काम दबाव। हम जितनी अधिक उचाई पर होते हैं उतना ही वायु-मंडल में हवा का दबाव काम होता जाता है और साथ ही साथ ऑक्सीजन भी काम होती जाती है जिस से कारण सांस लेने भी दिक्कत होती है।  थोड़ा आराम करने बैठ गया, चिप्स का पैकेट खुदरत ने खुद खोल दिया था अब मैं खाने को कैसे मन करता, बैठ गया खाने, तभी बारिश होने लगी। बुग्याल में ना तो कोई पेड़ होता है और ना ही कोई सर छिपाने की जगह। बुग्याल में कोई रास्ता ना भटक जाये इस के लिए कुछ कुछ दूरी पर छोटे छोटे सफ़ेद रंग के पत्थर रखे हैं जो दर्शाते हैं इधर से जाना है। 10 मिनट में ही काफी भीग गया। एक तो बारिश ऊपर से बदल ऐसे आ गए के कुछ भी दिखना बंद हो गया 1 मीटर का भी नहीं दिख रहा था तो पत्थर भी दिखना बंद हो गए। भीगता हुआ मैं खाई की तरफ जाने लगा फिर 1 मिनट को रुका, सोचा की भीगने दो पहले कुछ दिखेगा तभी आगे चलूँगा बदल हलके नहीं हुए कुछ भी नहीं दिख रहा था थोड़ा आगे चला तो 1 पत्थर मिला 4  से  5 फ़ीट ऊचा उस के निचे घुस गया, पत्थर थोड़ा टेड़ा था उस के निचे बारिश काम आ रही थी। ओले पड़ने लगे पुरे बुग्याल में मानो ओलो की चादर बिछ गई हो। करीब 40 मिनट तक सुकड़ा हुआ वही बैठा रहा असहनीय ठण्ड लगने लगी थी।  जब बारिश रुकी तो 1.30 बज गया था। सोचा अब आगे जाऊ या वापसी। अभी मै 3625 मीटर की उचाई पर  खलिया टॉप यहाँ से 125 मीटर उचाई पर रह गया था पर खलिया की तरफ काफी बदल थे तो वापसी चलने का फैसला लिया और चल दिया।


वापसी में कही नहीं रुका बस चलता गया। कभी भी पहाड़ से वापसी उतरते समय जल्दी जल्दी नहीं उतरना चाहिए, घुटनो में दर्द हो जाता है। इस बात का पता होते होए भी रस्ते में टांग की नस खिच गई। जैसे तैसे कर के बलाती बैंड तक आ गया सोच लिया था चाहे रत तक गाड़ी का इन्तिज़ार करना पड़े पैदल नहीं जाऊंगा अब तक लगभग 18 19 KM पैदल चल चुका था।  बैठा रहा आधे घंटे बाद 1 वैगन आर आई हाथ दिया तो रोक गई अंदर पति पत्नी और उनकी बेटी थे आते ही कहा सर सिटी तक लिफ्ट चाहिए पैर में दर्द है। उन्होंने पूछा कहा से आ रहे हो मैंने बता दिया लिफ्ट मिल गई 9 KM के पूरे रस्ते दोनों पति पत्नी मुझ से बाते करते हुए आये, सवालो की बौछार कर दी अकेले क्यू गए थे और कहा कहा घूमे हो। परिवार का स्वभाव बहुत अच्छा था।

शहर आ कर सब से पहले चाय पीने गया, चाय पी ब्रीटान्नीअ का केक खाया। फिर कमरे में जा कर थोड़ी देर को सो गया। 8.30 बजे उठा खाना खाया फिर थोड़ी देर घूम फिर कर सो गया।

बलाती फार्म जाने का पैदल मार्ग 

बलाती फार्म जाने का पैदल मार्ग 
बलाती फार्म 




बलाती फार्म में आलू की खेती 

कल बनाये गए स्टैंड से लिया गया फोटो 





ऐसा रास्ता है खलिया बुग्याल तक 








बदल आ रहे हैं 
पनोरमिओ मोड में 1 फोटो 












यह पेड़ अधिक उचाई पर पाये जाते हैं पता नहीं बर्फ के वज़न से लेट गए या होते हे ऐसे हैं 






लो जी आ गए बदल 

बादलो के बीच 

पत्थर के निचे बारिश से बचने के लिए 
ओलो की चादर सी 


बारिश 


धूप और  छाओं  साथ साथ 






कुमाऊ मंडल का टूरिस्ट रेस्ट हाउस 








अगले भाग में - मुनस्यारी से वापसी और अल्मोड़ा की खतरनाक बारिश